Thursday, December 30, 2010

सम्बन्ध कायम रहते है - विश्वास से

फ़िरदौस ख़ान said...
बेहद नेक ख़्याल है... हम आपके साथ हैं...
अगर आप सालाना एक सौ रुपये तय कर दें तो ज़्यादा ठीक नहीं रहेगा...क्योंकि यह ज़्यादा व्यवहारिक है...साथ ही जो आपके साथ जुड़ें, उनका मोबाइल नंबर भी रखिएगा... ताकि अगली बार उन्हें याद दिलाया जा सके (अगर वो भूल जाएं तो)
आप कम से कम एक हज़ार लोगों को जोड़िए...इस तरह आपके पास सालाना 100000 रुपये जमा हो जाएंगे...
साथ में अकाउंट नंबर भी दे दीजिए, जिसमें पैसे जमा कराए जा सकें...

@फ़िरदौस जी,
शुक्रिया आपका जो आप हमारे साथ हैं ..
यहाँ देने की भावना पैदा करना है न कि दान को इकट्ठा करना...मोबाईल नम्बर रखने की कोई जरूरत नहीं है...क्योंकि जो एक बार जुड़ जायेगा उसे खुद ही याद रहेगा...मदद करने वाले को याद दिलाना नहीं पड़ता...
इसमें जितने ज्यादा लोग जुडेंगे मदद उतनी जल्दी और ज्यादा लोगों को पहुँचाई जा सकेगी ...
अकाउंट नम्बर की भी कोई जरूरत नहीं ..क्यो?---ये अगली पोस्ट में बताती हूँ... 

मेरी पिछली पोस्ट पर ये टिप्पणी प्राप्त हुई थी.....और मैने जबाब में कहा था अगली पोस्ट में बताती हूँ सो-------------

जी हाँ.यहाँ जिस one rupee क्लब की बात मैने की है उसकी राशी कहीं भेजना या जमा करना नहीं है जैसे ही आपके पास देने योग्य राशी (११००) हो जाए आप किसी भी जरूरतमंद को उसे देकर आइये....
याद रहे हमारा मकसद--- दान लेना नहीं है मै चाह्ती हूँ लोगों में हर दिन किसी की मदद करना है ये भावना जन्म ले...उन्हे खुद ही याद रहे कि आज किसी की मदद की या नहीं?.. मेरा अनुभव बताती हूँ--  पहली बार जिसे देना तय किया था वे ७५ वर्ष के एक नेपाली बाबा थे ,(हमारी स्कूल मे काम करते थे वही क्वार्टर दिया था रहने को )जो सीटी बस से उतरते समय गिर गए थे और उनके एक पैर पर से बस का पहिया चला गया था घुटने से नीचे का बांया पैर काटना पड़ा था...८ महिने से अपने घर मे थे ,तीन शादिया की थी उन्होंने पहली से कोई बच्चे नही ,दूसरी की दो लड़्किया जो शादीशुदा नेपाल मे ही थी ,और तीसरी जिसके दो बेटे एक ८-९ साल व दूसरा १०-११ साल का ---पहली बार मे मेरे पास १३०० रूपये जमा हुए थे जब मैने सोचा कि ये पैसे उनको दे आयेंगे कल ,और जब देने जाने लगी तो पता चला बाबा को अस्पताल ले गए है पूछा क्यो? तो पता चला उनको पेरालिसिस का अटैक आया है और दाहिना हिस्सा काम नही कर रहा....मै और मेरी साथी तुरंत उस अस्पताल् मे गए जब वहां पहूँचे तो २ बज रहे थे .दोनों बच्चे पलंग के पास बैठे थे भूखे , जो पैसा था उससे बाबा को सुबह दूध पिला दिया था,दवाई वाले  के ५०० उधार थे ...हमे देखते ही बाबा रो पडॆ ....................उन्हे अपनी ओर से भी पैसे मिलाकर महिने भर की दवाई लाकर दी..बहुत अच्छा लगा था उन बच्चो को खाना खाने भेज कर.....
.पर ये उन्ही लोगो को देना है जो कुछ न कुछ काम करते है ...इस घटना को बताने के बाद  तो करीब ३० व्यक्तियो ने दिया था फ़िर अगले माह ८ को याद  रहा ...अभी मेरे साथ १४ सदस्य हैं जो याद से देते हैं --अब ........किसी संस्था को भी न देकर सीधे जाकर जरूरत मंद को देना है ...जैसे ठंड है तो ज्यादा से ज्यादा स्वेटर लेकर सुबह घूम कर उन लोगो को दू जो कही कुड्कुडा रहे हो ठंड से बचने को.....

ये सब आप अपने शहर में भी कर सकते हैं.....-
.अन्त में मेरी एक कविता याद आ रही है -----
"सही है"
कागज बनता है बांस से ,
पानी का मोल है प्यास से ,
चुभन होती है -फांस से ,
उम्मीद बंधती है -आस से ,
जीवन चलता है- साँस से ,
जीवन में रस घुलता है -हास से ,
कुछ रिश्ते होते है -ख़ास से ,
खुशी होती है- अपनों के पास से,
और सम्बन्ध कायम रहते है
- विश्वास से ।

अभी सिर्फ़ one rupee क्लब की शुरूआत की है लोगों को जोड़ने के लिए....(और विस्तॄत अगली बार)
आगे इसको विस्तार देना है--जो भी सदस्य "कदम" के तहत कार्य करना चाहता है "कदम" का लोगो लगा सकता है अपने ब्लॉग पर --कोड के लिए मेल कर सकते है--archanachaoji@gmail.com पर
जिसका जिक्र Buzz पर देखने को मिला आज ---- वर्किंग स्कूल- मोबाइल मास्टर

Wednesday, December 22, 2010

कम दान----ज्यादा चेहरे ज्यादा मुस्कान..............

आज ..यहाँ सिर्फ़ 0ne Rupee क्लब की शुरूआती जानकारी देना चाहती हू---
हमें प्रति व्यक्ति से एक रूपये रोज जमा करना है जिससे माह में प्रति व्यक्ति ३० रूपये होते है ...अगर हमारे घर में  ५ सदस्य हैं और हम ५ रूपये रोज जमा करते है तो एक माह में १५० रूपये होते है यदि १० लोग जुड़ते है तो ३०० यदि १०० तो३०००.....................अब यदि सोचे कि गर्मी के दिनों में किसी सामान ढोने वाले व्यक्ति को जो नंगे पैर चलता है,को स्लीपर देना चाहे तो १० लोग मिलकर महीने मे तीन लोगॊ को तो दे ही सकते है .....एक रूपया कहाँ से आयेगा अगर ऐसा सोचें तो----गुटका,सिगरेट जैसे पाऊच की कीमत देखें...

अब यहाँ ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि--अधिकतर लोग चाहते है देना, और कहते हैं --आप साल भर के ३६५ रुपये ले लिजिये......मगर मेरा मकसद दान लेना नहीं है मै चाह्ती हूँ लोगों में हर दिन किसी की मदद करना है ये भावना जन्म ले...उन्हे खुद ही याद रहे कि आज किसी की मदद की या नहीं?....इसलिये सिर्फ़ हर दिन एक रूपये के हिसाब से ही ३० रूपये माह जमा करें..

अब इन रूपयों का क्या करना है ------इन पैसो से उन लोगों की मदद करनी है जो बहुत मेहनत करने के बाद भी कई परेशानियों का सामना करते हैं जैसे--किसी स्कूल में जाकर ऐसे बच्चे की फ़ीस भर देना जिसकी फ़ीस जमा नहीं हो पा रही हो....किसी अस्पताल मे जाकर उस व्यक्ति की दवाई के पैसे भर देना जिसे दवाई उधार लेना पड़ गई हो....ये तो सिर्फ़ एक-दो उदाहरण हैं और आगे तो आप सब सक्षम है ही......पर ध्यान  रहे ---जिस तरह लेना सिर्फ़ ३० रूपये है ----देना भी सिर्फ़ ११०० रूपये ही रहे...ऐसा इसलिए कि ----हम रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करके एक ही दिन में ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें ताकि एक अचानक मिली मदद से हर व्यक्ति कम से कम एक दिन तो खुश रह सके ।.....
और विस्तॄत अगली बार.....


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Thursday, December 16, 2010

नया साल --नई शुरूआत

इसकी कल्पना की है एक नये समाज के रूप में जिसमे सब एक दूसरे के साथ हों।

पहले हम गाँवो/छोटे शहरों मे रहते थे,आपसी सद्भाव, भाई-चारा और पारिवारिक सम्बन्धों की प्रगाढ़ता रहती थी.जिसका मुख्य कारण एक-दूसरे की मदद करना ही  होता था।
..संयुक्त परिवारों मे सब मिलकर काम करते थे. कमाई का एक बड़ा हिस्सा सबके लिये मिलकर खर्च किया जाता था ।
सब अपना-अपना निर्धारित कार्य करते थे ,किसी में ये भावना नहीं आती थी कि कि हम किसी दूसरे के लिये काम क्यों करें ?
क्यों अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उनपर खर्च करें जो कुछ काम नहीं करता या हमसे कम काम करता है .या हमसे कम कमाता है?
सिर्फ़ पैसा ही महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि एक-दूसरे के लिये कार्य करने  की भावना ,मिलजुल कर कार्य करेने की भावना का होना महत्वपूर्ण होता है ।
पड़ोसी को भी पड़ोसी के घर की सब खबर रहती थी.कि आज फ़लां बच्चा रास्ते मे किसके साथ कहाँ जा रहा था ..या  किसी ने बच्चे के हाथ सब्जी का झोला पहुचा दिया कि चाची को दे देना..या आज मुन्ना आपके यही खा लेगा..या...
 मै यहाँ उस  बच्चे की देखभाल कर लूँ जो यहाँ बाजू में कमरा लेकेर अकेला पढ़ने आया है और कोई और दूसरे शहर में  मेरे बच्चे की....

बहुत सी बातें है जो समय के साथ बदल चुकी है या खतम हो चुकी है ......हमें उसी सामाजिक वातावरण को फ़िर से बनाना है जो इंटर्नेट व ब्लॉगिंग के जरिये सम्भव है....

आओ मिलकर "कदम" बढ़ाएं---चलें साथ----पकड़कर हाथ...

नये साल पर शुरू कर ही देंगे--मिलकर कदम बढ़ाना ताकि साल के अन्त तक ये बता पाये कि दॄढ़ इच्छा शक्ति के आगे कागजी कारवाई के बिना भी बहुत कुछ किया जा सकता है-----
जिसमे कोई लेन-देन नहीं बस आत्म संतुष्टि...............
बिना प्रचार के
बिना प्रवचन के
बिना भाषण के
बिना लोगों को इकट्ठा किये
 
तब किसी को किसी का इन्तजार नही करना होगा....
एक मदद के लिये....
हर जगह हम पहुँच जायेंगे
बिना किसी उदघाटन...निमंत्रण
 
आज बस इतना ही अभी देखें यहाँ भी---"KADAM"