एक मौका और मिला ---
एक व्यक्ति --अजय वर्मा ( उम्र करीब ३५-३८ वर्ष) ,का एक्सीडेंट हुआ, करीब डेढ़ साल पहले ,गिरने से रीढ़ की हड्डी में चोट लगी और दोनों पैरो ने काम करना बंद दिया ....उन्हें लेटे-लेटे बेड सोर होने लगे है उन्हें "कदम" के One Rupee Club (जिसके बारे में पिछली पोस्ट में बताया गया है ) की और से एअर बेड दिया .गया .......सिर्फ १३०० रुपये लगे ......लेकिन उनके लिए १३००० के बराबर शायद ........
घटना कुछ यूं घटी की वे अपने दोस्त की नई बाईक लेकर अपने घर जा रहे थे की रास्ते में ही ये हादसा हो गया ...बाईक बिना नंबर प्लेट की थी , उनके पास उस वक्त लाईसेंस भी नहीं था .......१०-१२ घंटे तक सड़क पर पड़े रहे ...कोई मदद के लिए नहीं आया ......बाद में पुलिस वालो ने अस्पताल पहुचाया .......घर वाले आये ईलाज हुआ पर सब बेकार ....अब वापस अपने गाँव लौट जाना पड़ा ........व्हीलचेअर पर बैठ सकते है बस.........एक बेटा है और पत्नी गृहिणी .........
ये तो हुई घटना और उसके बाद मदद----- लेकिन जरूरी है इससे सबक लेना ----कई बातो पर गौर किया जाए तो ऐसे हादसों को टला जा सकता है .........
निश्चित ही सहगता से हादसों को टाला जा सकता है किन्तु फिर भी हादसे तो हादसे होते हैं. बहुत सार्थक कदम..अनुकरणीय प्रयास है आपका. साधुवाद.
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ReplyDeleteसहगता= सजगता
ReplyDeleteऐसे हादसों से सजग रहने की जरुरत है ......! वर्ना एक जिन्दगी के साथ की जिन्दगियां बर्बाद हो सकती हैं ...!
ReplyDeleteबिलकुल सही..... हमें सबक लेना ही चाहिए जीवन बढ़कर कुछ नहीं है... ....
ReplyDelete*जीवन से
ReplyDeleteबसंत के साथ भी यही हुआ था।
ReplyDeleteआपको साधुवाद
kya kahun main.....abhi thoda avaak hoon main....!!
ReplyDeletegambheer baat....
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
बहुत बढिया काम..शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteसजगता हादसों को कम कर सकता है।
शुभकामनाएं आपको............
सचमुच नेक विचार है। जिसे व्यवहार में लाना चाहिए। ऐसा कुछ कभी कभी अपन भी करते रहेते हैं। जिसे कहते हैं न कि नेकी कर और दरिया में डाल।
ReplyDeleteआप सभी को, परिजनों तथा मित्रों सहित दीपावली पर मंगलकामनायें! ईश्वर की कृपा आप पर बनी रहे।
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साल की सबसे अंधेरी रात में*
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी
बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
भूल कर के घाव उन घातों के हम
समझें सभी तकरार को बीती हुई
कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
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जरुर
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