बेहद नेक ख़्याल है... हम आपके साथ हैं...
अगर आप सालाना एक सौ रुपये तय कर दें तो ज़्यादा ठीक नहीं रहेगा...क्योंकि यह ज़्यादा व्यवहारिक है...साथ ही जो आपके साथ जुड़ें, उनका मोबाइल नंबर भी रखिएगा... ताकि अगली बार उन्हें याद दिलाया जा सके (अगर वो भूल जाएं तो)
आप कम से कम एक हज़ार लोगों को जोड़िए...इस तरह आपके पास सालाना 100000 रुपये जमा हो जाएंगे...
साथ में अकाउंट नंबर भी दे दीजिए, जिसमें पैसे जमा कराए जा सकें...
@फ़िरदौस जी,
शुक्रिया आपका जो आप हमारे साथ हैं ..
यहाँ देने की भावना पैदा करना है न कि दान को इकट्ठा करना...मोबाईल नम्बर रखने की कोई जरूरत नहीं है...क्योंकि जो एक बार जुड़ जायेगा उसे खुद ही याद रहेगा...मदद करने वाले को याद दिलाना नहीं पड़ता...
इसमें जितने ज्यादा लोग जुडेंगे मदद उतनी जल्दी और ज्यादा लोगों को पहुँचाई जा सकेगी ...
अकाउंट नम्बर की भी कोई जरूरत नहीं ..क्यो?---ये अगली पोस्ट में बताती हूँ...
मेरी पिछली पोस्ट पर ये टिप्पणी प्राप्त हुई थी.....और मैने जबाब में कहा था अगली पोस्ट में बताती हूँ सो-------------
जी हाँ.यहाँ जिस one rupee क्लब की बात मैने की है उसकी राशी कहीं भेजना या जमा करना नहीं है जैसे ही आपके पास देने योग्य राशी (११००) हो जाए आप किसी भी जरूरतमंद को उसे देकर आइये....
- याद रहे हमारा मकसद--- दान लेना नहीं है मै चाह्ती हूँ लोगों में हर दिन किसी की मदद करना है ये भावना जन्म ले...उन्हे खुद ही याद रहे कि आज किसी की मदद की या नहीं?.. मेरा अनुभव बताती हूँ-- पहली बार जिसे देना तय किया था वे ७५ वर्ष के एक नेपाली बाबा थे ,(हमारी स्कूल मे काम करते थे वही क्वार्टर दिया था रहने को )जो सीटी बस से उतरते समय गिर गए थे और उनके एक पैर पर से बस का पहिया चला गया था घुटने से नीचे का बांया पैर काटना पड़ा था...८ महिने से अपने घर मे थे ,तीन शादिया की थी उन्होंने पहली से कोई बच्चे नही ,दूसरी की दो लड़्किया जो शादीशुदा नेपाल मे ही थी ,और तीसरी जिसके दो बेटे एक ८-९ साल व दूसरा १०-११ साल का ---पहली बार मे मेरे पास १३०० रूपये जमा हुए थे जब मैने सोचा कि ये पैसे उनको दे आयेंगे कल ,और जब देने जाने लगी तो पता चला बाबा को अस्पताल ले गए है पूछा क्यो? तो पता चला उनको पेरालिसिस का अटैक आया है और दाहिना हिस्सा काम नही कर रहा....मै और मेरी साथी तुरंत उस अस्पताल् मे गए जब वहां पहूँचे तो २ बज रहे थे .दोनों बच्चे पलंग के पास बैठे थे भूखे , जो पैसा था उससे बाबा को सुबह दूध पिला दिया था,दवाई वाले के ५०० उधार थे ...हमे देखते ही बाबा रो पडॆ ....................उन्हे अपनी ओर से भी पैसे मिलाकर महिने भर की दवाई लाकर दी..बहुत अच्छा लगा था उन बच्चो को खाना खाने भेज कर.....
ये सब आप अपने शहर में भी कर सकते हैं.....-
.अन्त में मेरी एक कविता याद आ रही है -----
"सही है"
कागज बनता है बांस से ,
पानी का मोल है प्यास से ,
चुभन होती है -फांस से ,
उम्मीद बंधती है -आस से ,
जीवन चलता है- साँस से ,
जीवन में रस घुलता है -हास से ,
कुछ रिश्ते होते है -ख़ास से ,
खुशी होती है- अपनों के पास से,
और सम्बन्ध कायम रहते है - विश्वास से ।
अभी सिर्फ़ one rupee क्लब की शुरूआत की है लोगों को जोड़ने के लिए....(और विस्तॄत अगली बार)
आगे इसको विस्तार देना है--जो भी सदस्य "कदम" के तहत कार्य करना चाहता है "कदम" का लोगो लगा सकता है अपने ब्लॉग पर --कोड के लिए मेल कर सकते है--archanachaoji@gmail.com पर
जिसका जिक्र Buzz पर देखने को मिला आज ---- वर्किंग स्कूल- मोबाइल मास्टर
कागज बनता है बांस से ,
ReplyDeleteपानी का मोल है प्यास से ,
चुभन होती है -फांस से ,
उम्मीद बंधती है -आस से ,
जीवन चलता है- साँस से ,
जीवन में रस घुलता है -हास से ,
कुछ रिश्ते होते है -ख़ास से ,
खुशी होती है- अपनों के पास से,
और सम्बन्ध कायम रहते है - विश्वास से ।
सच में ब्लॉग़जगत आकाश का विस्तार लिए है...यहाँ हमने पहली बार कदम रखा है ....सार्थक हुआ आना...
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